Shikha Arora

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लेखनी प्रतियोगिता -03-Aug-2022 - गुमनाम

एक हसीना हैं बड़ी जालिम,

नजरों से वो बनाती मुलाजिम।
वार से उसके कोई बच नहीं पाता,
देखें बिना उसको चैन नहीं आता।
लबों की मुस्कान से लेती जान,
अंदर से उसे कोई न पाए पहचान। 
खुशियों की प्यासी रहती वह,
आकर मिल जरा कहती वह।
अंधेरी गलियों में में घर उसका,
साया ही बस साथी जिसका।
रंगों से बहुत दूर ही वो रहती,
गम अपने सारे खुद ही सहती।
अंदर ही अंदर वो तो घुटती जाए, 
राग अलग ही सबसे वो गाती जाए।
दांत जैसे हो मोतियों की पंक्ति,
भाती नहीं हमको उसकी विरक्ति।
गुमनाम गलियों का हैं जमघट,
पानी भी भरता वहां पनघट। 
क्या कहकर उसको हम बुलाएं,
हम तो उसको कभी भूल न पाएं।
कातिल हसीना का प्यारा पैगाम,
भाता हैं उसको तो केवल जाम।
खो वह जाती हैं यहां महफिल में,
नहीं रहती हैं अपनी सुध बुध में।
अंधेरों से उसको निकालो बाहर,
गुमनाम न हो जाए कहीं वो यार।।


#दैनिक प्रतियोगिता हेतु
शिखा अरोरा (दिल्ली)

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12 Comments

shweta soni

04-Aug-2022 11:46 AM

Bahut achhi rachana 👌

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Khushbu

04-Aug-2022 09:01 AM

बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति 👌👌

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Punam verma

04-Aug-2022 07:52 AM

Very nice

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